क्या Indian Rupee गिरकर ₹90 प्रति डॉलर तक पहुँच सकता है? जानें किन Sectors पर पड़ेगा असर

डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत में गिरावट भारत के व्यापार घाटे और संपूर्ण अर्थव्यवस्था पर गहरा असर डालती है। कमजोर रुपया आयात की लागत को बढ़ा देता है, जिससे ज्यादा रुपये खर्च करने पड़ते हैं और व्यापार घाटा बढ़ता है। वहीं, मजबूत रुपया आयात की लागत घटा सकता है, लेकिन इससे भारतीय वस्तुएं विदेशी खरीदारों के लिए महंगी हो सकती हैं, जिससे निर्यात को नुकसान हो सकता है। रुपए की गिरावट महंगाई, विदेशी निवेश और देश के ऋण भुगतान को भी प्रभावित करती है, जिससे आर्थिक स्थिरता और व्यापार संतुलन पर असर पड़ता है।

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क्यों गिर रहा है Indian Rupee?

Indian Rupee में गिरावट के पीछे कई अहम कारण हैं:

  • FIIs द्वारा निरंतर शेयर बिक्री: विदेशी संस्थागत निवेशकों (Foreign Institutional Investors) द्वारा भारतीय शेयरों की निरंतर बिक्री से विदेशी पूंजी का बहिर्वाह होता है। यह डॉलर की मांग को बढ़ाता है और INR को कमजोर करता है, जिससे रुपया और गिरने लगता है।
  • अमेरिका के व्यापार टैरिफ का डर: अमेरिका द्वारा अन्य मुद्राओं पर व्यापार टैरिफ की संभावना के कारण निवेशक सुरक्षा की तलाश में डॉलर की ओर भागते हैं, जिससे INR कमजोर होता है।
  • Repo Rate में कटौती में देरी: अमेरिकी फेडरल रिजर्व और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने महंगाई से निपटने के लिए रेपो रेट में कटौती में देरी की है। इससे USD मजबूत हुआ है और भारतीय बाजारों से पूंजी का बहिर्वाह बढ़ा है, जो रुपये को कमजोर कर रहा है।
  • भू-राजनीतिक अस्थिरता: वैश्विक भू-राजनीतिक तनाव के कारण निवेशक डॉलर में निवेश को सुरक्षित मानते हैं। इस वजह से डॉलर मजबूत होता है और रुपये की कीमत घटती है।

प्रभावित होने वाले सेक्टर

IT सेक्टर

रुपये की गिरावट से भारत की प्रमुख IT कंपनियां जैसे Tata Consultancy Services (TCS), Infosys, और Wipro को फायदा होता है क्योंकि उनका बड़ा हिस्सा डॉलर में कमाई करता है। इससे इन कंपनियों की लाभप्रदता और प्रति शेयर आय बढ़ती है। हालांकि, टूल्स और सॉफ़्टवेयर के बढ़ते आयात लागत से कुछ लाभ घट सकता है।

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फ़ार्मा सेक्टर

बड़ी भारतीय फ़ार्मा कंपनियां जैसे Sun Pharmaceutical, Dr. Reddy’s और Cipla को API (Active Pharmaceutical Ingredient) का आयात चीन से करना पड़ता है। रुपये में गिरावट से इनकी उत्पादन लागत बढ़ती है, जिससे मार्जिन कम हो सकते हैं और उपभोक्ताओं के लिए दाम बढ़ सकते हैं।

ऑयल सेक्टर

तेल आयातकों जैसे Indian Oil Corporation (IOC), Bharat Petroleum (BPCL) और Reliance Industries को डॉलर-आधारित क्रूड की कीमतें अधिक चुकानी पड़ती हैं। इससे इनकी ऑपरेशनल लागत बढ़ती है और लाभप्रदता पर असर पड़ता है।

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EMS (Electronics Manufacturing Services) सेक्टर

Dixon Technologies, Sterlite Technologies, और Amber Enterprises जैसी कंपनियों पर भी रुपये की गिरावट का असर पड़ता है। इलेक्ट्रॉनिक घटकों के आयात में बढ़ती लागत से मार्जिन पर दबाव पड़ता है और इस प्रतिस्पर्धी क्षेत्र में लागत प्रबंधन चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

निष्कर्ष

भारतीय रुपये में गिरावट एक जटिल आर्थिक परिदृश्य प्रस्तुत करती है, जिसमें विभिन्न सेक्टर्स पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। IT कंपनियों को डॉलर-आधारित राजस्व का फायदा होता है, जबकि फ़ार्मा सेक्टर में API आयात की लागत बढ़ती है। तेल कंपनियों पर ऑपरेशनल खर्च बढ़ता है और EMS सेक्टर को महंगे इलेक्ट्रॉनिक घटकों की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। FIIs की बिक्री, रेपो रेट में कटौती में देरी और भू-राजनीतिक तनाव जैसे कारकों से रुपया कमजोर हो रहा है, जिससे भारत का व्यापार घाटा, महंगाई और आर्थिक स्थिरता प्रभावित हो रहे हैं।

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डिस्क्लेमर: स्टॉक मार्केट में निवेश बाजार जोखिमों के अधीन हैं। कृपया निवेश करने से पहले खुद की रिसर्च करें या फिर अपने वित्तीय सलाहकार से परामर्श अवश्य लें और उसके अनुसार ही निर्णय लें। इस आर्टिकल में दी गई सूचनाओं का उद्देश्य आम जनों के साथ निवेशकों और ट्रेडर्स को जागरूक करना और उनकी जानकारी में वृद्धि करना है।

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