डॉलर की मजबूती से भारतीय रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर पर, निवेशकों की चिंता बढ़ी 07 अक्टूबर 2024

भारतीय रुपया गुरुवार 07 अक्टूबर 2024 को अपने सबसे निचले स्तर पर गिर गया, जब विश्लेषकों ने उम्मीद जताई कि डोनाल्ड ट्रम्प की नीतियां आने वाले महीनों में अमेरिकी डॉलर को और मजबूत कर सकती हैं।

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रुपया 84.2950 के रिकॉर्ड स्तर पर

बाजार में अस्थिरता के बीच, भारतीय रुपया 84.2950 पर पहुंच गया, जो बुधवार के पिछले रिकॉर्ड 84.28 से भी कम है। डॉलर में बढ़ती ताकत और विदेशी निवेशकों की लगातार बिकवाली ने रुपये पर दबाव बढ़ा दिया है, जिससे मुद्रा बाजार में अनिश्चितता का माहौल बन गया है।

डोनाल्ड ट्रम्प की आर्थिक नीतियों का असर

अमेरिकी अर्थव्यवस्था में ट्रम्प की टैक्स कटौती और डेरिग्यूलेशन (नियमन में ढील) नीतियां अमेरिका की विकास दर को बढ़ावा देने की संभावना दर्शाती हैं। इससे डॉलर की मांग अन्य मुद्राओं के मुकाबले अधिक बढ़ रही है। इसके अतिरिक्त, ट्रम्प की संभावित टैरिफ नीतियां यूरो और एशियाई मुद्राओं पर दबाव डाल सकती हैं, जिससे डॉलर को और अधिक समर्थन मिल रहा है। विश्लेषकों का मानना है कि ऐसी नीतियां अमेरिकी अर्थव्यवस्था को फायदा पहुंचा सकती हैं, लेकिन साथ ही यह अन्य अर्थव्यवस्थाओं के लिए जोखिम भी पैदा कर रही हैं।

एशियाई मुद्राओं की स्थिति

पिछले सत्र में 1.8% तक की गिरावट के बाद गुरुवार को एशियाई मुद्राओं में कुछ राहत देखी गई। डॉलर इंडेक्स भी 0.1% की गिरावट के साथ 104.9 पर ट्रेड कर रहा है, लेकिन यह मामूली गिरावट भी अन्य मुद्राओं की स्थिति में सुधार नहीं ला पाई है। भारतीय रुपया अभी भी दबाव में है और अन्य एशियाई मुद्राओं के मुकाबले इसका प्रदर्शन कमजोर बना हुआ है।

RBI का हस्तक्षेप और मुद्रा की स्थिरता

बाजार विशेषज्ञों के अनुसार, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) रुपये की अस्थिरता को नियंत्रित करने के लिए हस्तक्षेप जारी रख सकता है। हालांकि, एक सरकारी बैंक के एक ट्रेडर के अनुसार, “RBI धीरे-धीरे रुपये (USD/INR) को ऊंचे स्तर पर जाने दे रहा है, लेकिन यह सीमा 84.40 के आसपास सीमित रह सकती है।”

रुपये के तुलनात्मक रूप से कम इम्प्लाइड वोलाटिलिटी (implied volatility) को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि RBI की सक्रियता जारी है, जिससे मुद्रा की तीव्र गिरावट से कुछ हद तक बचा जा सकता है।

विदेशी निवेशकों की बिकवाली से दबाव

भारतीय शेयर बाजार से लगातार हो रहे विदेशी निवेशकों के बहिर्वाह से रुपये पर और अधिक दबाव बना है। नवंबर में अब तक विदेशी निवेशक भारतीय शेयरों में $1.5 बिलियन की बिकवाली कर चुके हैं, जबकि पिछले महीने में यह आंकड़ा $11 बिलियन से अधिक था। BSE सेंसेक्स और निफ्टी 50 जैसे प्रमुख भारतीय इंडेक्स भी गुरुवार को 0.5% तक नीचे आए, जिससे घरेलू बाजार की कमजोरी और बढ़ गई है।

अमेरिकी फेडरल रिजर्व की नीति का इंतजार

निवेशकों की नजरें अब अमेरिकी फेडरल रिजर्व (Fed) की आगामी नीति निर्णय पर टिकी हैं, जो भारतीय समयानुसार आधी रात के बाद जारी होगा। विशेषज्ञों को उम्मीद है कि फेड इस बार दरों में 25 आधार अंकों की कटौती करेगा। इसके अलावा, चेयरमैन जेरोम पॉवेल की टिप्पणियों पर भी निवेशक ध्यान देंगे ताकि भविष्य की ब्याज दरों के रुझान का अंदाजा लगाया जा सके।

आगे की दिशा: रुपये के लिए चुनौतियां बरकरार

विश्लेषकों का मानना है कि RBI का हस्तक्षेप और भारत की वैश्विक मुद्राओं के मुकाबले महंगाई दर (inflation differential) रुपये की आगे की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। यदि अमेरिकी डॉलर की मजबूती जारी रहती है और विदेशी निवेशकों का बहिर्वाह नहीं रुकता है, तो रुपये में और कमजोरी देखी जा सकती है।

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डिस्क्लेमर: स्टॉक मार्केट में निवेश बाजार जोखिमों के अधीन हैं। कृपया निवेश करने से पहले खुद की रिसर्च करें या फिर अपने वित्तीय सलाहकार से परामर्श अवश्य लें और उसके अनुसार ही निर्णय लें। इस आर्टिकल में दी गई सूचनाओं का उद्देश्य आम जनों के साथ निवेशकों और ट्रेडर्स को जागरूक करना और उनकी जानकारी में वृद्धि करना है।

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