SEBI New Rule: भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने हाल ही में कुछ नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं, जो निवेशकों के डिमैट अकाउंट में सिक्योरिटी के क्रेडिट होने के तरीके को बदलने जा रहे हैं। अभी तक, खरीदी गई सिक्योरिटीज पहले ब्रोकर के खाते में क्रेडिट की जाती थीं, फिर ब्रोकर उन्हें निवेशकों के डिमैट खाते में ट्रांसफर करता था।
लेकिन अब SEBI के नए नियमों के तहत सिक्योरिटीज सीधे निवेशकों के खाते में क्रेडिट की जाएंगी, जिससे यह प्रक्रिया ज्यादा सरल और प्रभावी हो जाएगी। ये बदलाव दो चरणों में लागू होंगे, जिसकी शुरुआत 14 अक्टूबर 2024 से होगी। आइए विस्तार से जानते हैं कि ये नए नियम कैसे काम करेंगे, निवेशकों और ब्रोकरों पर इसका क्या असर होगा, और आगे क्या उम्मीद की जा सकती है।
वर्तमान में निवेशकों के डिमैट खाते में सिक्योरिटी कैसे क्रेडिट होती हैं?
जब कोई निवेशक सिक्योरिटीज खरीदता है, तो पहले क्लियरिंग कॉरपोरेशन (CC) उन सिक्योरिटीज को ब्रोकर के पूल खाते में क्रेडिट करता है। इसके बाद ब्रोकर उन सिक्योरिटीज को खरीदार के डिमैट खाते में ट्रांसफर करता है। इस प्रक्रिया के दौरान, जब तक ब्रोकर द्वारा सिक्योरिटीज ट्रांसफर नहीं की जाती, ब्रोकर का उन पर नियंत्रण होता है।
एक अन्य तरीका है जिसे “नेट सेटलमेंट के लिए डायरेक्ट पेआउट” कहा जाता है। इसमें निम्नलिखित प्रक्रिया होती है:
- यदि ब्रोकर के पास 1,000 खरीदार और 500 विक्रेता हैं, तो 500 खरीदारों को 500 विक्रेताओं के साथ मिलाया जाता है, और CC द्वारा शेष 500 खरीदारों को सीधे शेयर क्रेडिट किए जाते हैं।
- यदि 100 विक्रेता शेयर डिलीवर करने में विफल रहते हैं, यानी शेयर शॉर्ट डिलीवर किए जाते हैं, तो ब्रोकर को उन्हें बाजार से खरीदना पड़ता है या नीलामी में भाग लेना पड़ता है।
- यदि शेयर नीलामी के माध्यम से भी प्राप्त नहीं होते, तो सेटलमेंट क्लोज-आउट रेट पर पूरा होता है।
SEBI के नए दिशा-निर्देश कैसे बदलेंगे प्रक्रिया?
SEBI के ये दिशा-निर्देश दो चरणों में लागू होंगे और ब्रोकर की भूमिका को कम करेंगे। अब क्लियरिंग कॉरपोरेशन (CC) सीधे निवेशकों के डिमैट खाते में सिक्योरिटीज क्रेडिट करेगा।
चरण 1: 14 अक्टूबर 2024 – 13 जनवरी 2025
इस चरण में, CC सभी इक्विटी कैश सेगमेंट और फिजिकल सेटलमेंट के लिए सिक्योरिटीज को सीधे निवेशकों के डिमैट खाते में ट्रांसफर करेगा। हालांकि, कुछ मामलों में जहां पेआउट नहीं हो सकता है, जैसे कि अस्वीकृत पेआउट, निष्क्रिय डिमैट खाते, या किसी क्लीयरिंग सदस्य द्वारा अधिक पे-इन सिक्योरिटीज अस्थायी रूप से ब्रोकर के पूल खाते में क्रेडिट की जाएंगी।
चरण 2: 14 जनवरी 2025 से शुरू
दूसरे चरण में, डायरेक्ट पेआउट सिस्टम सभी प्रकार की सिक्योरिटी ट्रांजेक्शन, जिसमें सिक्योरिटी लेंडिंग एंड बॉरोइंग (SLB) और ऑफर फॉर सेल (OFS) शामिल हैं, पर लागू होगा। इस चरण में ब्रोकर की अधिकांश भूमिका समाप्त हो जाएगी, और सीधे CC द्वारा निवेशकों के खातों में सिक्योरिटीज क्रेडिट की जाएंगी।
शॉर्ट डिलीवरी के मामलों में, अब CC सीधे नीलामी सेटलमेंट संभालेगा, जिससे ब्रोकर को बाजार से शेयर सोर्स करने या कैश क्लोज-आउट का सामना नहीं करना पड़ेगा।
वर्तमान में ब्रोकर द्वारा सिक्योरिटी का प्लेज कैसे होता है?
जब कोई ग्राहक सिक्योरिटीज खरीदता है, लेकिन पूरी राशि का भुगतान नहीं करता है या मार्जिन ट्रेडिंग फैसिलिटी (MTF) के माध्यम से खरीदता है, तो ब्रोकर प्लेज की प्रक्रिया को संभालता है। इस प्रक्रिया में निम्नलिखित कदम होते हैं:
- अगर पूरी राशि का भुगतान नहीं किया जाता या मार्जिन ट्रेडिंग से सिक्योरिटीज खरीदी जाती हैं, तो ब्रोकर एक प्लेज क्रिएट करता है। इसका मतलब है कि सिक्योरिटीज ग्राहक के डिमैट खाते में ट्रांसफर की जाती हैं, लेकिन जब तक भुगतान पूरा नहीं होता, वे “प्लेज” के रूप में मार्क की जाती हैं।
- जब ग्राहक पूरी राशि का भुगतान कर देता है, तो ब्रोकर प्लेज रिलीज करता है, जिससे ग्राहक को सिक्योरिटीज का पूरा स्वामित्व मिल जाता है।
SEBI के दिशा-निर्देश इस प्रक्रिया को कैसे बदलेंगे?
नए दिशा-निर्देशों के तहत, ब्रोकर अब सीधे अनपेड या मार्जिन-फंडेड सिक्योरिटीज के लिए प्लेज को हैंडल नहीं करेगा। इसके बजाय, यदि कोई ग्राहक सिक्योरिटीज का पूरा भुगतान नहीं करता है, तो ब्रोकर CC से अनुरोध करेगा कि वह सीधे ग्राहक के डिमैट खाते में प्लेज को मार्क करे। जब सिक्योरिटीज का पूरा भुगतान हो जाएगा, तो प्लेज रिलीज कर दिया जाएगा।
आपके लिए क्या बदल रहा है?
एक निवेशक के रूप में, आपके लिए सीधे तौर पर कोई बदलाव नहीं है। ये बदलाव बैक-एंड पर होंगे और इस प्रक्रिया को और अधिक सुरक्षित और प्रभावी बनाने के लिए डिजाइन किए गए हैं। इस नई प्रणाली से न केवल आपके सिक्योरिटीज की सुरक्षा बढ़ेगी, बल्कि यह ट्रांजेक्शन में तेजी और पारदर्शिता भी लाएगी।
निष्कर्ष
SEBI के नए दिशा-निर्देश निवेशकों के लिए एक सकारात्मक बदलाव हैं, जिससे सिक्योरिटीज का सीधे उनके डिमैट खातों में क्रेडिट होना अधिक पारदर्शी, तेज़ और सुरक्षित हो जाएगा। इससे ब्रोकर की भूमिका में भी कमी आएगी, जिससे निवेशक के लिए जोखिम कम होंगे।
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