Stock Market Crash: क्या सच में भारतीय शेयर बाजार में गिरावट थमने का नाम नहीं ले रही? जानें क्यों बढ़ा है जोखिम 2024

Stock Market Crash: भारतीय शेयर बाजार में इन दिनों निवेशकों की चिंता बढ़ती जा रही है, क्योंकि हाल ही में लगातार बड़े-बड़े क्रैशेज देखने को मिले हैं। विदेशी निवेशकों (Foreign Institutional Investors – FII) की ओर से भारी बिकवाली के कारण शेयर बाजार पर दबाव है, जो निवेशकों के लिए चिंता का विषय बन गया है। आइए समझते हैं कि इस गिरावट का कारण क्या है और आने वाले समय में बाजार का रुख कैसा रह सकता है।

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FII का लगातार शुद्ध बिकवाली में रहना

पिछले कुछ समय से विदेशी निवेशक भारतीय शेयर बाजार से पैसा निकाल रहे हैं। अक्टूबर 2024 में एफआईआई की शुद्ध बिकवाली का आंकड़ा 11,445 करोड़ रुपए तक पहुंच गया, जो भारतीय बाजार के इतिहास में एक महीने का सबसे ऊंचा आंकड़ा है। एफआईआई का इतनी बड़ी मात्रा में भारतीय बाजार से पैसा निकालना वाकई में चौंकाने वाला है। अगर घरेलू निवेशकों (Domestic Institutional Investors – DII) ने खरीदारी न की होती, तो यह गिरावट और भी ज्यादा गंभीर हो सकती थी।

चीन में निवेश की ओर झुकाव

चीन में हाल ही में बड़े आर्थिक प्रोत्साहन (Stimulus Package) की घोषणा की गई है, जिससे कई विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (Foreign Portfolio Investors – FPI) चीन की ओर आकर्षित हो रहे हैं। यह भारतीय बाजार से धन के प्रवाह को धीमा कर सकता है, जिससे बाजार पर दबाव बना रहेगा। विदेशी निवेशक चीन में निवेश को लेकर अधिक उत्साहित नजर आ रहे हैं, जिसका असर भारतीय शेयर बाजार पर पड़ रहा है।

अमेरिकी चुनाव का असर

अमेरिका में 5 नवंबर को राष्ट्रपति चुनाव होने हैं, जिसका असर भारतीय शेयर बाजार पर भी देखा जा रहा है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि अगर डोनाल्ड ट्रंप पुनः चुने जाते हैं, तो अमेरिकी बाजार में शॉर्ट टर्म रैली देखी जा सकती है। वहीं, अगर कमला हैरिस की जीत होती है, तो अमेरिकी बाजार में एक डाउनफेज देखने को मिल सकता है। इन अनिश्चितताओं के चलते विदेशी निवेशक भारतीय बाजार में एहतियात बरत रहे हैं।

फेडरल रिजर्व का ब्याज दर निर्णय

फेडरल रिजर्व की 7 नवंबर को होने वाली बैठक में ब्याज दरों पर फैसला लिया जाएगा। फेडरल रिजर्व के अध्यक्ष जेरोम पॉवेल की नीति पर बाजार में तुरंत प्रतिक्रिया देखने को मिलती है। अगर ब्याज दरों में वृद्धि होती है, तो यह निवेशकों के लिए लाभकारी नहीं रहेगा और विदेशी निवेशकों का ध्यान भारत से हट सकता है। यह भी एक कारण है कि बाजार पर दबाव बढ़ा हुआ है।

मिडकैप और स्मॉलकैप सेगमेंट का उच्च मूल्यांकन

भारतीय मिडकैप और स्मॉलकैप कंपनियों का Price to Earnings (P/E) Ratio काफी अधिक हो गया है। उदाहरण के लिए, मिडकैप का P/E रेशियो 2022-23 तक 25-27 के करीब था, जो अब 44-45 के स्तर पर पहुंच गया है। यह बढ़ा हुआ मूल्यांकन विदेशी निवेशकों के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि कंपनियों की वर्तमान प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं है कि यह बढ़े हुए मूल्यांकन को सस्टेन कर सके। अगर आने वाले समय में कंपनियों का परफॉर्मेंस नहीं सुधरता है, तो मिडकैप और स्मॉलकैप सेगमेंट में बड़ी गिरावट देखने को मिल सकती है।

Q2 नतीजों की निराशाजनक परफॉर्मेंस

दूसरी तिमाही (Quarter 2) के नतीजे अधिकांश कंपनियों के लिए उम्मीद से कम रहे हैं। Nifty 50 की 50 में से 34 कंपनियों ने मात्र 5% की सेल्स ग्रोथ दिखाई है, वहीं EBITDA (Earnings Before Interest, Taxes, Depreciation, and Amortization) में केवल 1% की वृद्धि दर्ज हुई है। यह संकेत है कि कंपनियों के मुनाफे में बढ़ोतरी नहीं हो रही है, जिससे शेयर बाजार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

दीर्घकालिक और मध्यमकालिक दबाव

विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिकी चुनाव और फेडरल रिजर्व के फैसलों का असर शॉर्ट टर्म तक सीमित हो सकता है, लेकिन अगर मिडकैप और स्मॉलकैप सेगमेंट का प्रॉफिटबिलिटी नहीं बढ़ती है, तो दीर्घकालिक और मध्यमकालिक दबाव बाजार में बना रह सकता है। विदेशी निवेशक इस समय शॉर्ट टर्म पॉलिसी अपनाते हुए एहतियात बरत रहे हैं।

बाजार का गिरता मोमेंटम

पिछले डेढ़ साल में भारतीय बाजार ने शानदार वृद्धि दर्ज की थी, लेकिन अब यह मोमेंटम गिरता हुआ दिख रहा है। जब तक कंपनियों का बिजनेस प्रदर्शन सुधरता नहीं है, तब तक बाजार में दीर्घकालिक वृद्धि की संभावनाएं कमजोर नजर आ रही हैं। इससे निवेशकों के लिए शेयर बाजार से अपेक्षित लाभ लेना कठिन हो सकता है।

घरेलू निवेशकों का सहारा

भारतीय बाजार में जब भी विदेशी निवेशकों ने बड़ी बिकवाली की है, तब घरेलू निवेशक, जैसे कि म्यूचुअल फंड्स और इंश्योरेंस कंपनियां, खरीदारी कर बाजार को स्थिर बनाए रखने का काम करती रही हैं। हालांकि, यह सहारा कितने समय तक टिक सकता है, यह सवाल बना हुआ है। अगर घरेलू निवेशक भी बिकवाली की प्रवृत्ति अपनाते हैं, तो बाजार में गिरावट का दौर और लंबा हो सकता है।

बाजार की स्थिरता पर प्रश्नचिन्ह

मौजूदा वैश्विक घटनाक्रम और घरेलू नकारात्मक कारकों के चलते भारतीय बाजार की स्थिरता पर प्रश्नचिन्ह बना हुआ है। विदेशी निवेशकों की लगातार बिकवाली और घरेलू कंपनियों के खराब तिमाही नतीजों ने बाजार के मोमेंटम को कमजोर कर दिया है। अगर जल्द ही बिजनेस परफॉर्मेंस नहीं सुधरता, तो बाजार की स्थिरता पर गहरा असर पड़ सकता है।

निष्कर्ष:

भारतीय शेयर बाजार फिलहाल कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। विदेशी निवेशकों का आउटफ्लो, अमेरिकी चुनावों की अनिश्चितता, फेडरल रिजर्व का ब्याज दर निर्णय, और कंपनियों के खराब तिमाही नतीजे सभी मिलकर बाजार के लिए कठिन समय का संकेत दे रहे हैं। निवेशकों को फिलहाल सतर्क रहने की जरूरत है, क्योंकि बाजार का भविष्य काफी हद तक विदेशी निवेशकों और घरेलू कंपनियों के बिजनेस परफॉर्मेंस पर निर्भर करेगा।

ध्यान दें: अगर आप बाजार की हर छोटी-बड़ी जानकारी से अपडेट रहना चाहते हैं, तो किसी विश्वसनीय स्रोत का अनुसरण करते रहें और निवेश के फैसले सोच-समझकर करें।

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डिस्क्लेमर: स्टॉक मार्केट में निवेश बाजार जोखिमों के अधीन हैं। कृपया निवेश करने से पहले खुद की रिसर्च करें या फिर अपने वित्तीय सलाहकार से परामर्श अवश्य लें और उसके अनुसार ही निर्णय लें। इस आर्टिकल में दी गई सूचनाओं का उद्देश्य आम जनों के साथ निवेशकों और ट्रेडर्स को जागरूक करना और उनकी जानकारी में वृद्धि करना है।

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